नाउन | The Masseuse

by Prateeksha Pandey

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उसके काले हाथ
मेरी सफ़ेद खाल पर
थप-थप
फिसलते हैं.
“देह कर्री रक्खौ बिटिया”—
उसकी मर्ज़ी है.

उसके खुरदुरे हाँथ
खाल पर वैसे ही चलते हैं
जैसे दोपहर में
जूठे बर्तनों पर.

नामुमकिन है
शरीर को ढक रहे आखिरी कपड़े को भी
उठा देने के उसके आदेश को नामंजूर कर देना
क्यूंकि उसके स्पर्श से
शरीर का हर पुर्जा
बेबस है.

उसमें आत्मीयता नहीं है—
जब जांघ की खाल खिचने
और मुंह से हल्की हल्की चीखें
निकलने लगती हैं
वह पाती है मुझे पराजित
और पान से लाल हुए दांतों से
मुस्कुरा उठती है.

“अबै तीन जगह जाई का है”—
वह मुझसे हाथ झाड़ती है
बाँध लेती है अपने बिखर चुके बाल
और खोंस लेती है अपने खुल आये पल्लू को
कमर में.

फिर पचास रूपए लेकर
वो निकल जाती है घर से
“बिटिया अब तुम पर रहो”—
मुझे दर्द में संतुष्ट
छोड़कर.

~

image source: http://q-zine.org/2013/12/31/portrait-of-an-artist/

 

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